गुजरात में कांगे्रस के सामने चुनौतियों का पहाड़

सोमवार, 30 अक्तूबर 2017
सुरेश हिन्दुस्थानी
देश के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बने गुजरात विधानसभा चुनाव के लिए कांगे्रस में अभी से ऐसे हालात बनने लगे हैं, जिनके कारण कांगे्रस के समक्ष एक तरफ कुआ तो एक तरफ खाई जैसी परिस्थितियां निर्मित होती दिखाई दे रही हैं। कांगे्रस की राष्ट्रीय राजनीति में गहरा प्रभाव रखने वाले अहमद पटेल के सामने पहले से भी ज्यादा चुनौती पैदा होती जा रही हैं। अभी हाल ही में अहमद पटेल से जुडेÞ एक व्यावसायिक स्थल से आतंकवादियों की गिरफ्तारी उनको कठघरे में खड़ा करती हुई दिखाई दे रही है। इससे जहां कांगे्रस को पटखनी देने के लिए भाजपा को प्रभावशाली मुद्दा मिला है, वहीं कांगे्रस बैकफुट की ओर जाती हुई दिखाई दे रही है। कांगे्रस की सबसे बड़ी दुविधा यही है कि अगर वह अहमद पटेल से दूर रहने का प्रयास करती है तो स्वाभाविक रुप से कांगे्रस को मुसलमान वर्ग से नाराजी भी झेलनी पड़ सकती है, जो कांगे्रस कतई नहीं चाहती। अगर अहमद पटेल का समर्थन करती है तो फिर कांगे्रस से वह वर्ग दूर जा सकता है, जिसके लिए उसने लम्बे समय से रणनीति का उपयोग किया। कहने का तात्पर्य स्पष्ट है कि पटेल वर्ग को अपने पाले में करने के लिए कांगे्रस ने राजनीतिक चाल चली, उसमें कांगे्रस को उस समय सफलता मिलती हुई भी दिखाई दे रही थी, जब हार्दिक पटेल कांगे्रस नेता राहुल गांधी के संकेत पर कांगे्रस का समर्थन करते हुए दिखाई दिए। हालांकि हार्दिक पटेल जिस मुद्दे पर गुजरात में उभरे हैं, उस मुद्दे पर अडिग रहना उनकी राजनीतिक मजबूरी है। इसलिए हार्दिक पटेल ने अब कांगे्रस के सामने यक्ष स्थिति पैदा कर दी है। हार्दिक पटेल ने कांगे्रस से सवाल किया है कि पटेल आरक्षण पर कांगे्रस अपना रुख स्पष्ट करे।
राजनीतिक हालातों के विश्लेषण करने पर ऐसा भी लगता है कि हार्दिक का यह बयान भी पूरी तरह से कांगे्रस को फायदा पहुंचाने का एक कदम है। क्योंकि कांगे्रस पटेल वर्ग को आरक्षण देने की घोषणा कर सकती है। राजनीतिक लाभ प्राप्त करने के लिए कांगे्रस का यह कदम अब उजागर होने लगा है। जनता भी इस बात को समझने लगी है कि कांगे्रस अपने राजनीतिक उत्थान के लिए कैसी भी राजनीति कर सकती है। समाज में विघटन पैदा करने वाली कांगे्रस ने राज भी इसी पद्धति को आधार बनाकर ही किया है। आज भी कांगे्रस उसी राह का अनुसरण कर रही है। समाज में फूट डालने की मानसिकता से किया गया प्रचार चुनाव में सफलता तो दिला सकता है, लेकिन देश को मजबूत नहीं बना सकता। इसलिए कांगे्रस के बारे में यह आसानी से कहा जा सकता है कि वह केवल सत्ता प्राप्त करने के लिए ही राजनीति करती रही है, आज भी वही कर रही है। देश की समृद्धि से उसे कोई मतलब नहीं है।
गुजरात चुनाव में जिस प्रकार से राजनीतिक प्रचार किया जा रहा है, उससे यह भी लगने लगा है कि भाजपा में किसी भी प्रकार की घबराहट नहीं है, वहीं दूसरी ओर कांगे्रस के हालात इसके विपरीत दिखाई दे रहे हैं। उसमें घबराहट भी है और अपना अस्तित्व बचाए रखने के सशंकित जिजीविसा भी है। ऐसे में कांगे्रस किस परिणति को प्राप्त होगी, यह कहना फिलहाल मुश्किल जरुर है, लेकिन उसके अपने कार्यकर्ता इस बात के लिए आशान्वित भी नहीं हैं कि गुजरात में कांगे्रस की सरकार ही बनेगी। कांगे्रस के कार्यकर्ता और राजनीतिक विश्लेषक भी यह बात स्वीकार करने लगे हैं कि कांगे्रस की स्थिति में सुधार अवश्य हो सकता है, परंतु सरकार नहीं बन सकती। वर्तमान में कांगे्रस के समक्ष चुनौतियां ज्यादा हैं और प्रभावी भी हैं। क्योंकि गुजरात के पूर्व चुनावों में कांगे्रस के लिए चुनौती के रुप में राज्य का मुख्यमंत्री था, आज एक प्रधानमंत्री है। इससे स्पष्ट है कि अब गुजरात में चुनौती ज्यादा बड़ी है। राज्य का कोई व्यक्ति आज देश का प्रधानमंत्री है, यह भाजपा के लिए सकारात्मक कहा जा सकता है और भाजपा को इसी का राजनीतिक लाभ मिलेगा, यह तय है। राजनीतिक स्थितियां जो तस्वीर प्रदर्शित कर रही हैं, वह यह स्पष्ट कर रही हैं कि राज्य ही नहीं पूरे देश में आज नरेन्द्र मोदी सबसे बड़े राजनेता के रुप में स्थापित हुए हैं। ऐसी स्थिति में कांगे्रस का उनसे मुकाबला करना टेड़ी खीर ही प्रमाणित हो रहा है। कांगे्रस के नेता भले ही कुछ भी कहें, लेकिन वास्तविकता यही है कि गुजरात में भाजपा के सामने खड़े होने के लिए कांगे्रस को बहुत परिश्रम करना पड़ेगा।
बहरहाल भाजपा व कांग्रेस दोनों के लिए यह चुनाव प्रतिष्ठा का सवाल है। यह कहना भी गलत नहीं होगा कि दोनों पार्टियों में गुजरात चुनावों का माहौल लोकसभा चुनावों जैसा है। 1995 से निरंतर सत्ता में रही भाजपा अपने इस गढ़ को केवल बरकरार ही रखना नहीं चाहती, बल्कि इन चुनावों से नोटबंदी व जीएसटी जैसे मुद्दों पर जनता की मोहर लगवाने के मूड में है। दोनों राजनीतिक पार्टियां इस घमासान में एड़ी-चोटी का जोर लगाएंगी। पिछले 22 सालों से 60 सीटों तक सीमित रही कांग्रेस अपनी नजर इस बार पटेल और पाटीदार समाज पर टिकाए हुए है। गुजरात विधानसभा के पहले के चुनावों के राजनीतिक प्रचार पर ध्यान दिया जाए तो यही सामने आता है कि विपक्षी राजनीतिक दलों ने सांप्रदायिकता को अपना प्रमुख चुनावी हथियार बनाया था। दूसरी ओर भाजपा विकास, विकास और केवल विकास की ही बात करती रही। अब कांगे्रस से अपने पुराने मुद्दों से बहुत दूरी बना ली है। उसे समझ में आने लगा है कि गुजरात की जनता सांप्रदायिकता फैलाने वाले दलों के साथ नहीं है, वह पूरी तरह से विकास करने वाले दल भाजपा के साथ है। इसी कारण से भाजपा गुजरात में अभी तक सत्ता में है। गुजरात चुनावों में इस बार सबसे खास बात यह भी है कि राज्य में मुख्यमंत्री रह चुके नरेद्र मोदी पहली बार प्रधानमंत्री के रुप में चुनाव प्रचार कर रहे हैं, जो भाजपा के लिए सकारात्मक है।
अच्छी बात यह है कि गुजरात चुनावों में चाहे विरोधी दलों की बयानबाजी हो या फिर भाजपा नेताओं के बयान, सभी अब विकास की बात करने के लिए ही राजनीति करते दिखाई दे रहे हैं। पिछले चुनाव में कांगे्रस अध्यक्षा सोनिया गांधी ने नरेन्द्र मोदी को मौत का सौदागर तक बता दिया, लेकिन इसका परिणाम यही निकला कि भाजपा को गुजरात की सत्ता प्राप्त हो गई और कांगे्रस विपक्ष में ही रही। अब कांगे्रस को भी लगने लगा है कि इस प्रकार के मुद्दों से कोई राजनीतिक लाभ नहीं मिलने वाला है। इसलिए उसने भी आज भाजपा की तरह विकास की बात करनी प्रारंभ कर दी है। यानी गुजरात में अब विकास ही राजनीतिक मुद्दा है। कांगे्रस भले ही अपने राजनीतिक लाभ के लिए विकास की बात कर रही हो, लेकिन यह भी सच है कि कांगे्रस विकास से कोसों दूर है। हम जानते हैं कि कांगे्रस के एक बड़े नेता ने विकास को पागल की संज्ञा दे दी। यानी कांगे्रस मानती है कि देश में जहां भी विकास होगा, वह केवल पागलपन के अलावा कुछ भी नहीं है। इससे यह आसानी से समझ में आ जाता है कि कांगे्रस की राजनीति में स्थिरता नाम की कोई बात नहीं है। वह विकास की राजनीति भी कर रही है और विकास को पागल भी बता रही है। अब देखना यही होगा कि गुजरात में कांगे्रस भाजपा को पराजित करने के लिए किस प्रकार की योजनाएं बनाती है।
(लेखक वरिष्ठ स्तंभकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)
9770015780 व्हाट्सअप
Read Full 0 टिप्पणियाँ